do bailon ki kahani in hindi – दो बैलों की कथा – मुंशी प्रेमचंद
1. do bailon ki Kahani short summary in Hindi
जानवरों में गधा को इंसान सबसे ज्यादा बुध्दिहीन जानवर समझता है। हम जब किसी आदमी को मुर्ख या बेवकूफ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कह के ही सम्बोधित किया करते हैं। क्या गधा सचमुच बेवकूफ होता है, या उसके सीधेपन और उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता।
गायें सींग मारती हैं, बच्चें वाली गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब और छोटा जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है। किन्तु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहे इस गरीब को मारो-पीटो, चाहे जैसी खराब, सड़ी-गली हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो, पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा।
उसके चेहरे पर एक स्थायी विषाद स्थायी रूप से हमेशा छायी हुई रहता है। सुख-दु:ख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ॠषियों-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं, पर आदमी हमेशा से उसे बेवकूफ कहता आया है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं न देखा। कादचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है।
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दूसरे ने समर्थन किया- इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए।
तीसरा बोला- बैल नहीं हैं ये दोनों, अगले जन्म के आदमी हैं।
इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस न हुआ।
झूरी के पत्नी ने रोब के साथ कहा- बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी लोग पानी पिला-पिलाकर ही रखते हैं।
झूरी ने चिढाया- अगर चारा मिला होता तो क्यों भागते?
स्त्री चिढी- भागे इसलिए कि मेरा भाई तुम जैसे बुध्दुओं की तरह बैलों को सहलाते नहींफिरते। खिलाते हैं, तो उनसे ढेर सारा खेत भी जोतते हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखूँ? कहाँ से खली और चोकर मिलता है, सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूँगी, खाएँ चाहे मरें।
बैलों ने जब नाँद में मुँह डाला तो फीका-फीका। न कोई चिकनाहट, न कोई रस। खाये तो क्याखाएँ? आशा भरी ऑंखों से दोनों द्वार की ओर ताकने लगे।
झूरी ने मजदुर से कहा- थोडी-सी खली क्यों नहीं डाल देता?
मालिकन मुझे मार ही डालेंगी।
चुराकर डाल आ।
ना दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।
दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला। अबकी उसने दोनों को बैलगाड़ी में जोता।
दो-चार बार मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा, पर हीरा ने संभाल लिया। वह ज्यादा सहनशील था।
संध्या समय घर पहुँचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और कल की शरारत का मजा चखाया। फिर वही सूखा भूसा डाल दिया। और अपने दोनों बैलों को खली, चूनी सब कुछ दी।
दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी तो इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था कभी । उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी। आहत-सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा!
मगर दोनों स्वाभिमानी थे नाँद की तरफ ऑंखें तक न उठाईं।
दूसरे दिन झूरी के साला गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मारते थक गया, पर दोनों ने पाँव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डण्डे जमाए, तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाट कर बराबर हो गया। गले में बड़ी -बड़ी रस्सियाँ न होती तो दोनों पकड़ में भी न आते।
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हीरा ने मूक भाषा में कहा- मोती यहाँ से भागना व्यर्थ है।
मोती ने उत्तर दिया – इसने तुम्हारी तो जान ही ले ली थी।
हीरा – अबकी बार और मार पड़ेगी।
मोती – पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है तो मार से कहाँ तक बचेंगे।
गया दो आदमियों के साथ दौडा आ रहा है। दोनों के हाथों में लाठियाँ हैं।
मोती बोला – कहो तो दिखा दूँ कुछ मजा मैं भी। लाठी लेकर आ रहा है।
हीरा ने समझाया – नहीं भाई! चुप चाप खड़े हो जाओ।
मोती – मुझे मारेगा, तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा आज।
हीरा – नहीं। हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।
मोती बेचारा अपना दिल ऐंठकर रह गया। गया आ पहुँचा और दोनों को पकड़ के ले चला। कुशल हुई कि उसने इस बार मारपीट न की, नहीं तो मोती भी पलट पड़ता। उसके तेवर देखकर गया और उसके लोग समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही सलामती होगा।
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आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया। दोनों चुपचाप खड़े रहे। घर के लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लडकी दो रोटियाँ लिए निकली, और दोनों के मुँह में देकर चली गई।
उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। और सोचा चलो यहाँ भी कोई सज्जन रहता है। लडकी भैरो की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसको हमेसा मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी।
एक दिन मोती ने मूक भाषा में कहा- अब तो नहीं सहा जाता हीरा!
हीरा – क्या करना चाहते हो?
मोती – एक दो को सीगों पर उठाकर फेंक दूँगा।
हीरा – लेकिन जानते हो, वह प्यारी लडकी, जो हमें रोटियाँ खिलाती है, उसी की लडकी है, जो इस घर का मालिक है अगर कहीं कुछ हो गया तो। यह बेचारी अनाथ न हो जाएगी?
हीरा – लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूले जाते हो।
मोती – तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते। बताओ, तुड़ाकर भाग चलें।
हीरा – हाँ, यह मैं स्वीकार करता, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे?
मोती – इसका उपाय है। पहले रस्सी को थोडा-सा चबा लो। फिर एक झटके में टूट जाएगी।
रात को जब बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई, दोनों रस्सियाँ चबाने लगे, पर मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे।
अचानक घर का द्वार खुला और वही बालिका निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों अपनी पुँछ ख़ुशी से हिलाने लगे।
उसने गराँव खोल दिया, पर दोनों चुपचाप खडे रहे।
मोती ने अपनी भाषा में पूछा- अब चलते क्यों नहीं?
हीरा ने कहा – चलें तो लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी। सब इसी पर संदेह करेंगे।
अचानक बालिका चिल्लाई – दोनों फूफा वाले बैल भागे जा रहे हैं। ओ दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौडो- जल्दी दौरों।
हीरा ने कहा – मालूम होता है, राह भूल गए।
तुम भी बेतहाशा भागे। वहीं उसे मार गिराना था।
उसे मार गिराते, तो दुनिया क्या कहती? वह अपना धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोड़े?
जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया, तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेलने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम हटा दिया, यहाँ तक कि वह गड्ढे में गिर गया। तब उसे भी क्रोध अया। सँभलकर उठा और फिर मोती से भिड गया।मोती ने देखा, खेल में झगड़ा हुआ चाहता है, तो किनारे हट गया।
हीरा ने चिन्तित स्वर में कहा, अपने घमण्ड से फूला हुआ है। आरजू विनती न सुनेगा।
भाग क्यों न चलें?
भागना कायरता होता है।
तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ-दो- ग्यारह होता है।
और जो दौडाए?
फिर कोई और उपाय सोचो, जल्दी !
दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। साँड को भी संगठित शत्रुओं से लडने का तजुर्बा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुध्द करने में निपुण था। ज्यों ही साँढ़ हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौडाया। साँड उसकी तरफ मुडा, तो हीरा ने रगेदा। साँड चाहता था कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले, पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे।
मोती ने अपनी इसारो वाली भाषा में कहा, मेरा तो जी चाहता था कि उसे को मार ही डालूँ।
हीरा ने तिरस्कार किया, गिरे हुए बैरी पर चोट नहीं करना चाहिए।
यह सब ढोंग है। बैरी को ऐसा सबक सीखना चाहिए कि फिर न उठे।
अब घर कैसे पहुँचेंगे, सबसे पहले वह सोचो।
पहले कुछ खा लें, तो सोचें।
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रात को भी जब कुछ भोजन को न मिला, तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी।
मोती से बोला – अब तो नहीं रहा जाता मोती!
मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया – मुझे तो मालूम होता है प्राण निकल रहे हैं।
इतनी जल्द हिम्मत न हारो भाई! यहाँ से भागने का कोई उपाय निकालना चाहिए।
आओ दीवार तोड डालें।
मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।
बस इसी बूते पर अकरते थे?
सारी अकड निकल गई?
तभी उसी समय काँजीहौंस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाजिरी लेने निकला। हीरा का उजापन देखकर उसने उसे कई डण्डे रसीद किए और तो और मोटी सी रस्सी से भी बाँध दिया।
मोती ने पड़े-पड़े कहा – आखिर के मार खाई, क्या मिला?
अपने बूते-भर जोर तो मार दिया।
ऐसा जोर मारना किस काम का कि और बन्धन में पड गए।
जोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बन्धन पडते जाएँ।
जान से हाथ धोना पडेगा।
हां, यह बात तो है। अच्छा, तो ला फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।
मोती ने भी दीवार में सींग मारा, थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर दोनों की हिम्मत बढ़ी, फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह जोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंदी से लड़ रहा है। आखिर के कोई दो घंटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई, उसने दुगनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा तो आधी पुरी दीवार गिर पड़ी।
एक गधे ने कहा- जो यहाँ से भागे तो कहीं ओर फिर पकड़ लिए जाएं।
तो क्या हरज है, अभी तो भागने का अवसर है।
हमें तो डर लगता है। हम यहीं पड़े रहेंगे।
आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें, या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया तो हीरा ने कहा- तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो, शायद कहीं भेंट हो जाए।
मोती ने आंखों में आंसू लाकर कहा- तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए हो तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊं ?
हीरा ने कहा-बहुत मार पड़ेगी, लोग समझ जाएंगे की, यह तुम्हारी ही शरारत है।
यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मार कर बाड़े से बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो बैठ गया।
सुबह होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की जरूरत नहीं। बस, इतना ही काफी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया।
भगवान के लिए हमारा जीना मरना दोनों एक बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे। एक बार उस भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था। क्या अब न बचाएंगे ?
यह आदमी छुरी चलाएगा, देख लेना।
तो क्या चिंता है ? मांस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी के काम आ जाएगा हमारी।
नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी कांप रही थी। बेचारे पांव तक न उठा पा रहे थे, पर भय के मारे गिरते-प़डते भागे चले जाते थे, क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी पर जाने पर डंडा जमा देता था।
सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि परिचित राह है। हां, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही बाग, वही गांव मिलने लगे, अपितु उनकी चाल तेज होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता एक दम से गायब हो गई। आह ! यह लो ! अपना ही राह आ गया। इसी कुएं पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही वह कुआं है।
हीरा बोला -भगवान की दया है।
मैं तो अब घर भागता हूँ।
यह जाने देगा ?
इसे मैं मार गिराता हूँ।
नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहां से आगे हम न जाएंगे।
दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भांति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।
वही झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आंखों से आनन्द के आंसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।
दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियां पकड़ लीं। झूरी ने कहा-‘मेरे बैल हैं।
तुम्हारे बैल कैसे हैं ? मैं मवेसीखाने से नीलाम लिए आ रहा हूँ।
मैं तो समझता हूँ, चुराए लिए जाते हो! चुपके से चले जाओ, मेरे बैल हैं। मैं बेचूंगा तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार हैं ?
जाकर थाने में रपट कर दूँगा।
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दढियल झल्लाकर बैलों को जबरदस्ती पकड़ के ले जाने के लिए बढा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया। दढियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढियल भागा।
मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका, पर खडा दढियल का रास्ता देख रहा था। दढियल दूर खरा धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था। और मोती विजयी शूर की भाँति उसका रास्ता रोके खडा था। गाँव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे। जब दढियल हारकर चला गया, तो मोती अकडता हुआ लौटा।
हीरा ने कहा- मैं डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।
अगर वह मुझे पकडता, तो मैं बउसे बिना मारे न छोडता।
अब न आएगा।
आएगा तो दूर ही से खबर लूँगा। देखूँ, कैसे ले जाता है।
जो गोली मरवा दे?
मर जाऊँगा, पर उसके काम तो न आऊँगा।
हमारी जान को कोई जान नहीं समझता।
इसलिए कि हम इतने सीधे हैं।
थोड़ी देर में ही नाँदों में खली भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खुशी-खुशी खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था। वह उनसे लिपट गया।
झूरी की पत्नी भी भीतर से दौड़ी-दौड़ी आई। उसने भी आकर दोनों बैलों हीरा – मोती के माथे चूम लिए।
‘मुंशी प्रेमचंद’
दो बैलों की कथा से हमें क्या शिक्षा मिलती है
do bailon ki kahani in hindi, दों बैलो की कथा एक शिक्षाप्रद कहानी है। ये दोनों बैल सीधे सादे लोगों का प्रतिक है हीरा मोती को बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पर फिर भी दोनों अपने बुरे समय में एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ते। दोनों अपनी आजादी के लिए काफी संघर्ष करते है। और कई सारे नैतिक मूल्यों का भी ध्यान रखते है । और अंत में दोनों अपने घर लौट आते है। इस कहानी से हमे शिक्षा मिलती है की कभी भी जीवन में हार नहीं माननी चाहिए और संघर्ष करना चाहिये।
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