Vikram Betal Story in Hindi – विक्रम बेताल की अद्भुत और अनोखी कहानियां

Dosto आपने विक्रम और बेताल का नाम तो बचपन में जरूर सुना होगा। बेताल के द्वारा राजा विक्रम को कही गयी रहस्मयी कहानियों को बच्चों के साथ बूढ़े-जवान  भी बड़े रूचि से सुना करते थे। आज फिर से उन कहानियों Vikram Betal Story in Hindi को आपलोगों के बीच लाया हूँ | जिसे पढ़ के आपलोग उन कहानियों का आनंद ले सकेंगे और विक्रम बेताल की अद्भुत और अनोखी कहानियों से मिली शिक्षा को अपने जीवन में समाहित करेंगे।

सन 1985-88 में विक्रम और बेताल की कहानी को 26 एपिसोड में टेलीविज़न पे प्रसारित किया गया, यह प्रसारण बैताल पच्चीसी के कहानियों पे आधारित थी इसमें विक्रमादित्य के रोल में रामायण के प्रसिद्ध कलाकार अरुण गोविल ने काम किया था ।

बेताल प्रतिदिन राजा विक्रम को एक कहानी सुनाता है और अन्त में राजा से ऐसा प्रश्न कर देता है कि राजा को उसका उत्तर देना ही पड़ता है। उसने शर्त लगा रखी है कि अगर राजा बोलेगा तो वह उससे रूठकर फिर से पेड़ पर जा लटकेगा। लेकिन यह जानते हुए भी सवाल सामने आने पर राजा से चुप नहीं रहा जाता।

अब हमलोग Vikram Betaal ki rahasya gatha के Top 10+ कहानियॉ पढ़ेंगे.

1. त्याग किसका बड़ा (Vikram Betal Story in Hindi)

गांधार देश में ब्रह्मदत्त नाम का राजा राज करता। उसके राज्य में एक वैश्य था, जिसका नाम हिरण्यदत्त था। उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी।

एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उसपर ऐसा मोहित हुआ की उससे प्रेम करने लगा, घर लौटकर वह सारी रात उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन वह फिर से बाग़ में गया।

मदनसेना वहाँ अकेली बैठी थी, उसके पास जाकर धर्मदत्त ने अपने प्रेम का प्रस्ताव रखा परन्तु मदनसेना ने इंकार कर दिया। बहुत कहने पर भी जब मदनसेना न मानी तब उसने कहा, तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं अपना प्राण दे दूँगा और इतना बोलते ही पास ही बह रही एक नदी में कूद गया।

कुछ देर तक तो मदनसेना सोचती रही कि जब डूबने लगेगा तो वह खुद तैरकर बाहर निकल आयेगा लेकिन जब युवक डूबने के पश्चात भी तैरकर बाहर नहीं आया तब मदनसेना नदी में कूद पड़ी और उस युवक को बचा लायीं।

मदनसेना बोली की तुम कितने मूर्ख हो, यदि नदी में डूब जाते तो तुम तैरकर बाहर क्यों नहीं आये।

मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता मैं मरने के लिए ही कूदा था, मुझे तैरना नहीं आता।

मदनसेना का ह्रदय द्रवित हो गया वो कुछ न बोल सकी।

फिर धर्मदत्त बोला, मदनसेना मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ, मैं पूर्णिमा के दिन तुम्हारी प्रतिक्षा करूंगा, क्या तुम आओगी।

यदि ईश्वर ने चाहा तो जरूर आऊंगी इतना कहकर मदनसेना चली गयी।

उधर मदनसेना को देखने उसके घर लड़के वाले आये हुए थे। मदनसेना के माता-पिता को लड़का बहुत पसंद था और लड़के वाले को मदनसेना।

बात कुछ ऐसी थी कि लड़के की दादी का अंत समय निकट था और वो मरने से पहले अपने पोते का विवाह होते देखना चाहती थी इसलिए उनलोगों ने आनन-फानन में दो दिनों में ही विवाह संपन्न करने का फैसला लिया गया।

मदनसेना अपने माता-पिता की इच्छा को इंकार न कर सकी। उसका विवाह हो गया और वह जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे क्षमा करे तो आपसे एक बात कहूँ पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी।

सुनकर पति ने उसे चरित्रहीन समझा और उसे मन ही मन त्यागकर उसने जाने की आज्ञा दे दी और मदनसेना के पीछे-पीछे चल पड़ा।

मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर चली। रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसने उसका आँचल पकड़ लिया मदनसेना ने कहा, तुम मुझे छोड़ दो मेरे गहने लेना चाहते हो तो लो।

चोर बोला, मैं तो तुम्हें चाहता हूँ। मदनसेना ने उसे सारा हाल कहा, पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।

इतना सुन के चोर ने उसे छोड़ दिया और वह भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा।

मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची। उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआ और उसने पूछा, तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी?

मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी, धर्मदत्त पर उसका बड़ा गहरा असर पड़ा। उसे मदनसेना के साथ समय बिताना बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। उसने मदनसेना को समझाकर वापस उसे घर जाने को कहा मदनसेना चल पड़ी।

फिर वह चोर के पास आयी चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और उसे अपने आप पर ग्लानि महसूस हुयी। उसने मदनसेना को बिना कुछ किये जाने दिया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने भी सारा हाल देख लिया था वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ आनन्द से रहने लगा।

इतना कहकर बेताल बोला, बताओ विक्रम! बताओ, अब तुम्हारा न्याय क्या कहता है। पति, धर्मदत्त और चोर.

इनमें से कौन अधिक त्यागी है?

विक्रम ने कहा, जो त्याग बिना स्वार्थ के किया जाता है वही सच्चा त्याग कहलाता हैं। चोर का त्याग ही सबसे बड़ा त्याग हैं। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता है। धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता है कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया, न तो गहने ही लिए। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।

राजा का यह जवाब सुनकर बेताल बोला तुम सच में बहुत बड़े न्यायी हो, तुम्हारा न्याय विश्व में अमर होगा। इतना बोल के बेताल पेड़ पर जा लटका, राजा विक्रमादित्य फिर उसके पीछे तेज कदमों से चल पड़े।

इस कहानी से सीख : बिना स्वार्थ के किया जाने वाला त्याग ही सच्चा त्याग कहलाता हैं

2. उत्तम वर कौन

चम्मापुर नाम का एक नगर था, जिसमें चम्पकेश्वर नाम का राजा राज करता था। उसके सुलोचना नाम की रानी थी और शशिबाला नाम की लड़की। राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी। जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप और निखर गया, उसके यौवन के चर्चे दूर-दूर तक होने लगे।

राजा और रानी को उसके विवाह की चिन्ता हुई। चारों ओर इसकी खबर फैल गयी। आस-पड़ोस के देशों से रिश्ते आने लगे। दूर-दराज़ के बहुत-से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेंजी, पर राजकुमारी ने किसी को भी पसन्द न किया। राजा ने कहा, बेटी, कहो तो स्वयंवर करूँ? लेकिन शशिबाला इसके लिए राजी नहीं हुई।

आख़िर राजा ने तय किया कि वह उसका विवाह उस आदमी के साथ करेगा, जो रूप, बल और ज्ञान, इन तीनों में परिपूर्ण होगा।

संयोगवश एक दिन राजा के पास चार देश के चार वर आये। वैशाली के राजकुमार ने कहा, मेरे जैसा रेश्म का वस्त्र कोई तैयार नहीं कर सकता, मैं एक कपड़ा बनाकर पाँच लाख में बेचता हूँ, इस विद्या को मेरे अलावा और कोई नहीं जानता और उसने राजा को कई रेशमी वस्त्र भी दिये। सभी, वस्त्रों की चमक-दमक देखकर आश्चर्यचकित रह गये।

अवन्ति के राजकुमार ने कहा, मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ। इसके साथ ही मैं शरीर के सभी अंगों के बारे में भी जानता हूँ राजकुमारी को कभी शारीरिक कष्ट नहीं होगा।

चोल देश के राजकुमार ने कहा, मैं शब्दवेधी तीर चलाने में माहिर हूँ। धनुर्विद्या में मुझे कोई परास्त नहीं कर सकता।

बंग देश के राजकुमार ने कहा, मैंने तो इतना शास्त्र पढ़ा हूँ कि कोई भी मेरा मुकाबला नहीं कर सकता, मुझे वेदों तथा पुराणों से लेकर गीता तक सभी कंठस्थ याद हैं।

चारों की बातें सुनकर राजा सोच में पड़ गये। वे लोग सुन्दरता में भी एक से एक बढ़कर थे। उसने राजकुमारी को बुलाकर उनके गुण और रूप का वर्णन किया, पर वह चुप रही।

इतना कहकर बेताल बोला, राजन्, तुम बताओ कि राजकुमारी को किससे विवाह करना चाहिए?

राजकुमारी के लिए उत्तम वर कौन ? होना चाहिए

विक्रम बोला, जो कपड़ा बनाकर बेचता है, वह शूद्र है। जो पशुओं की भाषा तथा शरीर के अंगों की जानकारी रखता है, वह वैश्य है। जो शास्त्र पढ़ा है, ब्राह्मण है पर जो शब्दवेधी तीर चलाना जानता है, वह राजकुमारी का सजातीय है और उसके योग्य है। राजकुमारी उसी को मिलनी चाहिए।

राजा के इतना कहते ही बेताल भयानक अट्टहास करते हुए गायब हो गया।

विक्रम फिर उसके पीछे-पीछे पीपल के पेड़ की तरफ चल पड़े।

3. तीन अजूबे भाई

अंग देश के एक गाँव मे एक धनी ब्राह्मण रहता था उसके तीन पुत्र थे। एक बार ब्राह्मण ने एक यज्ञ करना चाहा उसके लिए एक समुद्री कछुए की जरूरत हुई। उसने तीनों भाइयों को कछुआ लाने को कहा। वे तीनों समुद्र पर पहुँचे वहाँ उन्हें एक कछुआ मिल गया।

बड़े ने कहा, मैं भोजनचंग हूँ, इसलिए कछुए को नहीं छुऊँगा मझला बोला, मैं नारीचंग हूँ, मैं नहीं ले जाऊँगा सबसे छोटा बोला, मैं शैयाचंग हूँ, सो मैं नहीं ले जाऊँगा।वे तीनों इस बहस में पड़ गये कि उनमें कौन बढ़कर है।

जब वे आपस में इसका फैसला न कर सके तो राजा के पास पहुँचे। राजा ने कहा, आप लोग रुकें। मैं तीनों की अलग-अलग जाँच करूँगा।इसके बाद राजा ने बढ़िया भोजन तैयार कराया और तीनों खाने बैठे।

सबसे बड़े ने कहा, मैं खाना नहीं खाऊँगा इसमें से मुर्दे की गन्ध आती है वह उठकर चला। राजा ने पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह भोजन श्मशान के पास के खेत का बना था। राजा ने कहा, तुम सचमुच भोजनचंग हो, तुम्हें भोजन की पहचान है।

रात के समय राजा ने एक सुन्दर स्त्री को मझले भाई के पास भेजा। ज्योंही वह वहाँ पहुँची कि मझले भाई ने कहा, इसे हटाओ यहाँ से इसके शरीर से बकरी की दूध की गंध आती है। राजा ने यह सुनकर पता लगाया तो मालूम हुआ कि वह स्त्री बचपन में बकरी के दूध पर पली थी। राजा बड़ा खुश हुआ और बोला, तुम सचमुच नारीचंग हो।

इसके बाद उसने तीसरे भाई को सोने के लिए सात गद्दों का पलंग दिया। जैसे ही वह उस पर लेटा कि एकदम चीखकर उठ बैठा। लोगों ने देखा, उसकी पीठ पर एक लाल रेखा खींची थी। राजा को ख़बर मिली तो उसने बिछौने को दिखवाया। सात गद्दों के नीचे उसमें एक बाल निकला। उसी से उसकी पीठ पर लाल लकीर हो गयी थीं।

राजा को बड़ा अचरज हुआ फिर उसने तीनों को एक-एक लाख अशर्फियाँ दीं। अब वे तीनों कछुए को ले जाना भूल गये, वहीं आनन्द से रहने लगे।

इतना कहकर बेताल बोला, हे राजन! तुम बताओ, उन तीनों में से बढ़कर कौन था?

राजा ने कहा, मेरे विचार से सबसे बढ़कर शैयाचंग था, क्योंकि उसकी पीठ पर बाल का निशान दिखाई दिया और ढूँढ़ने पर बिस्तर में बाल पाया भी गया। बाकी दो के बारे में तो यह कहा जा सकता है कि उन्होंने किसी से पूछकर जान लिया होगा।

बेताल – तो ये थी तीन अजुबे भाईयों की कहानी

इतना सुनते ही बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर वहाँ गया और उसे लेकर लौटा तो उसने अगली कहानी (vikram betal ki rahasya gatha) सुनाने लगा।

4. सज्जनता किसकी अधिक

मिथलावती नाम की एक नगरी थी। उसमें गुणधिप नाम का राजा राज करता था। वह बड़ा ही प्रतापी और यशस्वी था उसे शिकार खेलने का बड़ा शौक था।एक दिन राजा शिकार खेलने चला। सैनिक भी साथ हो लिये चलते-चलते राजा एक घने वन में पहुँचा।

कुछ ही देर बाद राजा को एक मृग दिखाई दिया। वह उसके पीछे चल पड़ा हिरण का पीछा करते-करते राजा के सैनिक उससे बिछड़ गये।

राजा जंगल के बीचों-बीच पहुंच गया लेकिन हिरण पकड़ में नही आया। राजा ने पीछे मुड़ कर देखा दूर-दूर तक कोई नहीं था उसके नौकर-चाकर, सैनिक, मंत्री सब बिछुड़ गये थे।

बैताल बोला देखो, विक्रम भाग्य का खेल देखों।

राजा उस डरावनी जंगल में भी निडर था लेकिन उसे एक बात बड़ी बेचैन कर रही थीं वह थी भूख। भूख-प्यास के कारण राजा का बुरा हाल था तभी एक लकड़हारे ने राजा को टोका।

राजा ने जब उस सुनसान जंगल में मनुष्य की आवाज सुनी तो बहुत प्रसन्न हुआ। राजा के पूछने पर लकड़हारे ने बताया, वह इस वन में लकड़ी काटने आता है। उसने राजा को भूखा देख अपना भोजन राजा को दिया। राजा अपनी त्रास मिटाने लगा और दोनों में बातचीत शुरू हुई।

राजन्, सज्जनता हर मनुष्य को एक-दूसरे की मदद करने के लिए प्रेरित करती हैं और छ: बातें आदमी को हल्का करती हैं खोटे नर की प्रीति, बिना कारण हँसी, स्त्री से विवाद, असज्जन स्वामी की सेवा, गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा।

हे राजा, ये पाँच चीज़ें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है आयु, कर्म, धन, विद्या और यश। राजन्, जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है, तब तक उसके बहुत-से दास रहते हैं। जब पुण्य घट जाता है तो भाई भी बैरी हो जाते हैं। पर एक बात है, स्वामी की सेवा अकारथ नहीं जाती। कभी-न-कभी फल मिल ही जाता है।

यह सुन राजा के मन पर उसका बड़ा असर हुआ। जंगल से निकलने के बाद उस लकड़हारे को अपने साथ ले राजा नगर में लौट आये। राजा ने उसे अपने यहाँ सिपहसालार बना लिया। उसे बढ़िया-बढ़िया कपड़े और गहने दिये।

एक दिन वो सिपहसालार किसी काम से कहीं गया। रास्ते में उसे देवी का मन्दिर मिला। उसने अन्दर जाकर देवी की पूजा की। जब वह बाहर निकला तो देखता क्या है, उसके पीछे एक सुन्दर स्त्री चली आ रही है। वह उसे देखते ही उसकी ओर आकर्षित हो गया। स्त्री ने कहा, पहले तुम कुण्ड में स्नान कर आओ। फिर जो कहोगे, सो करूँगी।

इतना सुनकर सिपहसालार कपड़े उतारकर जैसे ही कुण्ड में घुसा और गोता लगाया कि अपने नगर में पहुँच गया। उसने जाकर राजा को सारा हाल कह-सुनाया। राजा ने कहा, यह अचरज मुझे भी दिखाओ।

दोनों घोड़ों पर सवार होकर देवी के मन्दिर पर आये। अन्दर जाकर दर्शन किये और जैसे ही बाहर निकले कि वह स्त्री प्रकट हो गयी। राजा को देखते ही बोली, महाराज, मैं आपके रूप पर मुग्ध हूँ आप जो कहेंगे, वही करुँगी।

राजा भी उस रूपवती पर मुग्ध हो गये थे राजा ने संभलकर कहा, ऐसी बात है तो तू मेरे इस सेवक से विवाह कर ले। स्त्री बोली, यह नहीं होगा। मैं तो तुम्हें चाहती हूँ।

राजा ने कहा, सज्जन लोग जो कहते हैं, उसे निभाते हैं तुम अपने वचन का पालन करो। इसके बाद राजा ने उसका विवाह अपने सेवक से करा दिया।

इतना कहकर बेताल बोला, हे राजन् यह बताओ कि राजा और सेवक, दोनों में से किसका काम बड़ा हुआ?

किसकी सज्जनता अधिक थी?

राजा ने कहा, नौकर का बेताल ने पूछा, सो कैसे?

राजा बोला, उपकार करना राजा का तो धर्म ही था। इसलिए उसके उपकार करने में कोई खास बात नहीं हुई। लेकिन जिसका धर्म नहीं था, उसने उपकार किया तो उसका काम बढ़कर हुआ?

इसलिये लकड़हारा कि ही सज्जनता ज्यादा हैइतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे पुन: लेकर चला तो उसने राजा को राह में फिर से एक कहानी (vikram betal ki kahani) सुनायी।

5. पत्नी किसकी हो

धर्मपुर नाम की एक नगरी थी। उसमें धर्मशील नाम का राजा राज करता था उसके अन्धक नाम का दीवान था। एक दिन दीवान ने कहा, “महाराज” एक मन्दिर बनवाकर देवी को बिठाकर पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा।

राजा ने ऐसा ही किया, एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उससे वर माँगने को कहा। राजा के कोई सन्तान नहीं थी। उसने देवी से पुत्र माँगा देवी बोली, अच्छी बात है, तुझे बड़ा प्रतापी पुत्र जल्द ही प्राप्त होगा।

कुछ दिन के बाद राजा को एक लड़का हुआ सारे नगर में बड़ी खुशियाँ मनायी गयी।

एक दिन एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया। उसकी निगाह देवी के मन्दिर में पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया। उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुन्दर थी। उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मन्दिर में जाकर देवी से प्रार्थना की, हे देवी! यह लड़की मुझे मिल जाये अगर मिल गयी तो मैं अपना सिर काट के तुझपर चढ़ा दूँगा।

इसके बाद वह हर घड़ी बेचैन रहने लगा। उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत देखकर वह लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह हो गया।

विवाह के कुछ दिन बाद लड़की के पिता के यहाँ उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए न्यौता आया। मित्र को साथ लेकर धोबी और उसकी पत्नी चले। रास्ते में उसी देवी का मन्दिर पड़ा तो धोबी को अपना वादा याद आ गया। उसने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणाम कर के इतने ज़ोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।

देर हो जाने पर जब उसका मित्र मन्दिर के अन्दर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप देवी को शीश चढ़ाया है। सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी।

उधर बाहर खड़ी-खड़ी धोबी की स्त्री भी हैरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी। देखकर चकित रह गयी। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आयी इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, मैं तुझपर प्रसन्न हूँ। जो चाहो, सो माँगो।

स्त्री बोली, हे देवी! इन दोनों को वापस जिंदा कर दो। देवी ने कहा, अच्छा, तुम दोनों के सिर मिलाकर रख दो।

घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जिला दिया। अब वे दोनों आपस में ही झगड़ने लगे। एक कहता था कि यह स्त्री मेरी है, दूसरा कहता मेरी।

इतनी कहानी सुनाने के बाद बेताल रूक गया।

कुछ देर बाद बेताल बोला, हे राजन्! बताओ कि यह पत्नी किसकी हो?

राजा ने कहा, नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए जिस शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।

इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा उसे फिर लाया तो उसने अगली कहानी (Vikram Betal Story in Hindi) सुनाने लगा।

6. स्त्री-पुरुष में ज्यादा पापी कौन

भोगवती नाम की एक नगरी थी। उसमें राजा रूपसेन राज करता था। उसके पास चिन्तामणि नाम का एक तोता था। एक दिन राजा ने उससे पूछा, हमारा विवाह किसके साथ होगा? तोते ने कहा, मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा। राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही बात कहा।

उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी। उसका नाम था मंञ्जरी। एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा रूपसेन के साथ।

इसके बाद दोनों का विवाह हो गया। रानी के साथ उसकी मैना भी आ गयी। राजा-रानी ने तोता-मैना का ब्याह करके उन्हें एक पिंजड़े में रख दिया। एक दिन की बात है तोता-मैना में बहस हो गयी। मैना ने कहा, आदमी बड़ा पापी, दग़ाबाज़ और अधर्मी होता है। तोते ने कहा, स्त्री झूठी, लालची और हत्यारी होती है। दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने कहा, क्या बात है, तुम आपस में क्यों लड़ रहे हो?

मैना ने कहा, महाराज, मर्द बड़े बुरे होते हैं। इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनायी।

किसी नगर में महाधन नाम का एक सेठ रहता था। विवाह के बहुत दिनों के बाद उसके घर एक लड़का पैदा हुआ। सेठ ने उसका बड़ी अच्छी तरह से लालन-पालन किया, पर लड़का बड़ा होकर जुआ खेलने लगा। इस बीच सेठ मर गया।

लड़के ने अपना सारा धन जुए में खो दिया। जब पास में कुछ न बचा तो वह नगर छोड़कर चन्द्रपुरी नामक नगरी में जा पहुँचा। वहां हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था। उसके पास जाकर उसने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज़ लेकर सौदागरी करने गया था। माल बेचा, धन कमाया लेकिन लौटते समय समुद्र में ऐसा तूफ़ान आया कि जहाज़ डूब गया और मैं जैसे-तैसे बचकर यहां आ गया।

उस सेठ के एक लड़की थी रत्नावती। सेठ को बड़ी खुशी हुई कि घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया। उसने उस लड़के को अपने घर में रख लिया और कुछ दिन बाद अपनी लड़की से उसका विवाह कर दिया। दोनों वहीं रहने लगे। अन्त में एक दिन वहां से बिदा हुए। सेठ ने बहुत-सा धन दिया और एक दासी को उनके साथ भेज दिया।

रास्ते में एक जंगल पड़ता था। वहाँ आकर लड़के ने स्त्री से कहा, यहाँ बहुत डर है, तुम अपने गहने उतारकर मेरी कमर में बाँध दो, स्त्री ने ऐसा ही किया। इसके बाद लड़के ने कहारों को धन देकर डोली को वापस करा दिया और दासी को मार-कर कुएँ में डाल दिया। फिर स्त्री को भी कुएँ में पटक-कर आगे बढ़ गया।

स्त्री रोने लगी, एक मुसाफ़िर उधर से जा रहा था। जंगल में रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ आया; उसने स्त्री को कुएँ से निकालकर उसके घर पहुँचा दिया। स्त्री ने घर जाकर माँ-बाप से कह दिया कि रास्ते में चोरों ने हमारे गहने छीन लिये और दासी को मारकर, मुझे कुएँ में ढकेलकर, भाग गये। बाप ने उसे ढाँढस बँधाया और कहा कि तू चिन्ता मत कर। अगर तेरा स्वामी जीवित होगा और किसी दिन आ जायेगा।

उधर वह लड़का जेवर लेकर शहर पहुँचा। उसे तो जुए की लत लगी थी। वह सारे गहने जुए में हार गया। उसकी बुरी हालत हुई तो वह फिर अपनी ससुराल चला। वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले उसकी स्त्री मिली। वह बड़ी खुश हुई। उसने पति से कहा, आप कोई चिन्ता न करें, मैंने यहाँ आकर दूसरी ही बात कही है। जो कहा था, वह उसने बता दिया।

सेठ अपने जमाई से मिलकर काफी प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे बड़ी अच्छी तरह से घर में रखा।

कुछ दिन बाद एक रोज़ जब वह लड़की गहने पहने सो रही थी, उसने चुपचाप छुरी से उसे मार डाला और उसके गहने लेकर चम्पत हो गया।

मैना बोली, महाराज, यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा। ऐसा पापी होता है आदमी!

राजा ने तोते से कहा, अब तुम बताओ कि स्त्री क्यों बुरी होती है?

इस पर तोते ने भी एक कहानी सुनायी।

कंचनपुर में सागरदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके श्रीदत्त नाम का एक लड़का था। वहां से कुछ दूर पर एक और नगर था श्रीविजयपुर। उसमें सोमदत्त नाम का सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी जिसका नाम जयश्री था वह श्रीदत्त को ब्याही थी। ब्याह के बाद श्रीदत्त व्यापार करने परदेस चला गया।

बारह बरस हो गये और वह न आया तो जयश्री व्याकुल होने लगी। एक दिन वह अपनी अटारी पर खड़ी थी कि एक आदमी उसे दिखाई दिया। उसे देखते ही वह उस पर मोहित हो गयी। उसने उसे अपनी सखी के घर बुलवा लिया। रात होते ही वह उस सखी के घर चली जाती और रात-भर वहाँ रहकर दिन निकलने से पहले ही लौट आती। इस तरह बहुत दिन बीत गये।

इस बीच एक दिन उसका पति परदेस से लौट आया। स्त्री बड़ी दु:खी हुईं अब वह क्या करे? पति हारा-थका था। जल्दी ही उसकी आँख लग गई और स्त्री उठकर अपने दोस्त के पास चल दी।

रास्ते में एक चोर खड़ा था। वह देखने लगा कि स्त्री कहाँ जाती है। धीरे-धीरे वह सहेली के मकान पर पहुँची। चोर भी पीछे-पीछे गया। संयोग से उस आदमी को साँप ने काट लिया था ओर वह मरा पड़ा था। स्त्री ने समझा सो रहा है।

वहीं आँगन में पीपल का एक पेड़ था, जिस पर एक पिशाच बैठा यह लीला देख रहा था। उसने उस आदमी के शरीर में प्रवेश करके अपनी काम पिपासा मिटाई और उत्तेजित होकर उसने उन स्त्री की नाक काट ली और फिर उस आदमी की देह से निकलकर पेड़ पर जा बैठा।

स्त्री रोती हुई अपनी सहेली के पास गयी। सहेली ने कहा कि तुम अपने पति के पास जाओ ओर वहां बैठकर रोने लगो। कोई पूछे तो कह देना कि पति ने नाक काट ली है।

उसने ऐसा ही किया। उसका रोना सुनकर लोग इकट्ठे हो गये। आदमी जाग उठा। उसे सारा हाल मालूम हुआ तो वह बड़ा दु:खी हुआ। लड़की के बाप ने कोतवाल को ख़बर दे दी। कोतवाल उन सबको राजा के पास ले गया। लड़की की हालत देखकर राजा को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, इस आदमी को सूली पर लटका दो।

वह चोर वहां खड़ा था। जब उसने देखा कि एक बेक़सूर आदमी को सूली पर लटकाया जा रहा है तो उसने राजा के सामने जाकर सब हाल सच-सच बता दिया। बोला, अगर मेरी बात का विश्वास न हो तो जाकर देख लीजिए, उस आदमी के मुँह में अभी भी स्त्री की नाक है।

राजा ने पता लगवाया तो बात सच निकली।

इतना कहकर तोता बोला, हे राजा! स्त्रियाँ ऐसी होती हैं! राजा ने उस स्त्री का सिर मुँड़वाकर, गधे पर चढ़ाकर, नगर में घुमवाया और शहर से बाहर छुड़वा दिया।

यह कहानी सुनाकर बेताल बोला, विक्रम अब तुम फैसला करो, बताओ कि स्त्री-पुरुष में ज्यादा पापी कौन है?

राजा ने कहा, स्त्री। बेताल ने पूछा, कैसे?

विक्रम ने कहा, मर्द कैसा ही दुष्ट हो, उसे धर्म का थोड़ा-बहुत विचार रहता ही है। स्त्री को नहीं रहता। अब चोर को ही देखो, वह इन दोनों से ज्यादा दुष्ट हैं पर जब उसने एक बेकसूर आदमी को मरते देखा तो उससे नहीं रहा गया और उसने अपनी परवाह किये बगैर राजा को सब बात बता दी।

इसलिए स्त्री ही अधिक पापिन है।

राजा के इतना कहते ही बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। विक्रमादित्य लौटकर गया और उसे पकड़कर लाया। फिर बेताल ने राजा को चालाकी से अपनी शर्तों में फंसा कर बैताल पच्चीसी की एक और कहानी (Vikram Betal Story in Hindi) सुनाई।

7. पुण्य किसका अधिक

वर्धमान नाम के एक नगर में रूपसेन नाम का एक दयालु और न्यायप्रिय राजा राज करता था। एक दिन उसके यहाँ वीरवर नाम का एक राजपूत नौकरी के लिए आया। राजा ने उससे पूछा कि उसे ख़र्च के लिए क्या चाहिए तो उसने जवाब दिया, हज़ार तोले सोना।

सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। राजा ने पूछा, तुम्हारे साथ कौन-कौन है? उसने जवाब दिया, मेरी स्त्री, बेटा और बेटी। राजा को और भी अचम्भा हुआ। आख़िर चार जने इतने धन का क्या करेंगे? फिर भी राजा ने सोचा जरूर कोई कारण होगा और उसने उसकी बात मान ली।

उस दिन से वीरवर रोज हज़ार तोले सोना भण्डारी से लेकर अपने घर आता। उसमें से आधा ब्राह्मणों में बाँट देता, बाकी के दो हिस्से करके एक मेहमानों, वैरागियों और संन्यासियों को देता और दूसरे से भोजन बनवाकर पहले ग़रीबों को खिलाता, उसके बाद जो बचता, उसे स्त्री-बच्चों को खिलाता, आप खाता। काम यह था कि शाम होते ही ढाल-तलवार लेकर राजा के पलंग की चौकीदारी करता। राजा को जब कभी रात को ज़रूरत होती, वह हाज़िर रहता।

एक दिन आधी रात के समय राजा को मरघट की ओर से किसी के रोने की आवाज़ आयी। उसने वीरवर को पुकारा तो वह आ गया। राजा ने कहा, जाओ, पता लगाकर आओ कि इतनी रात गये यह कौन रो रहा है ओर क्यों रो रहा है?

वीरवर तत्काल वहाँ से चल दिया मरघट में जाकर देखता क्या है कि सिर से पाँव तक एक स्त्री गहनों से लदी कभी नाचती है, कभी कूदती है और सिर पीट-पीटकर रोती है। लेकिन उसकी आँखों से एक बूँद आँसू नहीं निकलती। वीरवर ने पूछा, तुम कौन हो? क्यों रोती हो?

उसने कहा, मैं राज-लक्ष्मी हूँ। रोती इसलिए हूँ कि राजा रूपसेन के घर में खोटे काम होते हैं, इसलिए वहाँ दरिद्रता का डेरा पड़ने वाला है। मैं वहाँ से चली जाऊँगी और राजा दु:खी होकर एक महीने में मर जायेगा।

सुनकर वीरवर ने राज-लक्ष्मी से पूछा, इससे बचने का कोई उपाय है!

राज-लक्ष्मी बोली, हा, है।

यहां से पूरब में एक योजन पर एक देवी का मन्दिर है। अगर तुम उस देवी पर अपने बेटे का शीश चढ़ा दो तो विपदा टल सकती है। फिर राजा सौ बरस तक राज करेगा।

वीरवर घर आया और अपनी स्त्री को जगाकर सब हाल कहा। स्त्री ने बेटे को जगाया, बेटी भी जाग पड़ी। जब बालक ने बात सुनी तो वह खुश होकर बोला, आप मेरा शीश काटकर ज़रूर चढ़ा दें। एक तो आपकी आज्ञा, दूसरे स्वामी का काम, तीसरे यह देह देवता पर चढ़े, इससे बढ़कर बात और क्या होगी! आप जल्दी करें।

वीरवर ने अपनी स्त्री से कहा, अब तुम बताओ। स्त्री बोली, स्त्री का धर्म पति की सेवा करने में है।

निदान, चारों जन देवी के मन्दिर में पहुँचे। वीरवर ने हाथ जोड़कर कहा, हे देवी, मैं अपने बेटे की बलि देता हूँ। मेरे राजा की सौ बरस की उम्र हो।

इतना कहकर उसने इतने ज़ोर से तलवार मारा कि लड़के का शीश धड़ से अलग हो गया। भाई का यह हाल देख कर बहन ने भी तलवार से अपना सिर अलग कर डाला।

बेटा-बेटी चले गये तो दु:खी माँ ने भी उन्हीं का रास्ता पकड़ा और अपनी गर्दन काट दी। वीरवर ने सोचा कि घर में कोई नहीं रहा तो मैं ही जीकर क्या करूँगा। उसने भी अपना सिर काट डाला।

राजा को जब बात यह मालूम हुआ तो वह वहाँ आया। उसे बड़ा दु:ख हुआ कि उसके लिए चार प्राणियों की जान चली गयी।

वह सोचने लगा कि ऐसा राज करने से धिक्कार है! यह सोच उसने तलवार उठा ली और जैसे ही अपना सिर काटने को हुआ कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया।

देवी बोली – राजन्, मैं तेरे साहस से प्रसन्न हूँ तू जो वर माँगेगा, सो दूँगी।

राजा ने कहा, देवी, तुम प्रसन्न हो तो इन चारों को जिन्दा कर दो। देवी ने अमृत छिड़ककर उन चारों को फिर से जिन्दा कर दिया।

इतना कहकर बेताल बोला, विक्रम, बताओ, पुण्य किसका अधिक हुआ?

विक्रम बोला, राजा का।

बेताल ने पूछा, क्यों?

विक्रम ने कहा, इसलिए कि स्वामी के लिए चाकर का प्राण देना धर्म है; लेकिन चाकर के लिए राजा का राजपाट को छोड़, जान को तिनके के समान समझकर देने को तैयार हो जाना बहुत बड़ी बात है।

यह सुन बेताल ग़ायब हो गया और पेड़ पर जा लटका। विक्रम दौड़ा-दौड़ा वहाँ पहुँचा ओर उसे फिर पकड़कर लाया तो बोताल ने अगली कहानी कही।

8. वह सुंदरी किसे मिलेगी

यमुना के किनारे धर्मस्थान नामक एक नगर था। उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज करता था। उसी में केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था। ब्राह्मण यमुना के तट पर जप-तप किया करता था। उसकी एक पुत्री थी, जिसका नाम मालती था वह बड़ी रूपवती थी।

जब वह ब्याह के योग्य हुई तो उसके माता, पिता और भाई को चिन्ता हुई। संयोग से एक दिन जब ब्राह्मण अपने किसी यजमान की बारात में गया था और भाई पढ़ने गया था, तभी उनके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया। लड़की की माँ ने उसके रूप और गुणों को देखकर उससे कहा कि मैं तुमसे अपनी लड़की का ब्याह करूँगी।

उधर ब्राह्मण पिता को भी एक दूसरा लड़का मिल गया और उसने उस लड़के को भी यही वचन दे दिया। उधर ब्राह्मण का लड़का जहाँ पढ़ने गया था, वहां वह एक लड़के से यही वादा कर आया।

कुछ समय बाद बाप-बेटे घर में इकट्ठे हुए तो देखते क्या हैं कि वहां एक तीसरा लड़का और मौजूद है। दो उनके साथ आये थे। अब क्या हो? ब्राह्मण, उसका लड़का और ब्राह्मणी बड़े सोच में पड़े।

दैवयोग से हुआ क्या कि लड़की को साँप ने काट लिया और वह मर गयी। उसके बाप, भाई और तीनों लड़कों ने बड़ी भाग-दौड़ की, ज़हर झाड़नेवालों को बुलाया, पर कोई नतीजा न निकला। सब अपनी-अपनी करके चले गये।

दु:खी होकर वे उस लड़की को श्मशान में ले गये और क्रिया-कर्म कर आये। तीनों लड़कों में से एक ने तो उसकी हड्डियाँ चुन लीं और फकीर बनकर जंगल में चला गया। दूसरे ने राख की गठरी बाँधी और वहीं झोपड़ी डालकर रहने लगा। तीसरा योगी होकर देश-देश घुमने लगा।

एक दिन की बात है, वह तीसरा लड़का घूमते-घामते किसी नगर में पहुँचा और एक ब्राह्मण के घर भोजन करने बैठा। उस ब्राह्मण का बेटा राजा के यहां सैनिक था। भोजन के दौरान ही कुछ सैनिक ब्राह्मण के बेटे की शव लेकर आये और वो सभी घटना ब्राह्मण को बता दी जिसके कारण उसका बेटा मरा था।

ब्राह्मणी रोने लगी, वह योगी भी भोजन छोड़ उठ खड़ा हुआ। ब्राह्मणी का विलाप उसके पति से नही देखा गया। ब्राह्मण के पास उसके पूर्वजों की दी हुयी संजीवनी विद्या की पोथी थी। ब्राह्मण ने संजीवनी विद्या की पोथी लाकर जैसे ही एक मन्त्र पढ़ा। उसका मरा हुआ लड़का फिर से जीवित हो गया।

यह देखकर वह योगी सोचने लगा कि अगर यह पोथी मेरे हाथ पड़ जाये तो मैं भी उस लड़की को फिर से जिला सकता हूँ। इसके बाद उसने भोजन किया और वहीं ठहर गया। जब रात को सब खा-पीकर सो गये तो वह योगी चुपचाप वह पोथी लेकर चल दिया। जिस स्थान पर उस लड़की को जलाया गया था, वहां जाकर उसने देखा कि दूसरे लड़के वहां बैठे बातें कर रहे हैं।

इस लड़के के यह कहने पर कि उसे संजीवनी विद्या की पोथी मिल गयी है और वह मन्त्र पढ़कर लड़की कोजिन्दा कर सकता है, उन दोनों ने हड्डियाँ और राख निकाली। ब्राह्मण ने जैसे ही मंत्र पढ़ा, वह लड़की जी उठी। अब वो तीनों उसके पीछे आपस में झगड़ने लगे।

इतना कहकर बेताल बोला, राजन्, बताओ कि वह वह सुंदरी किसे मिलनी चाहिए?

राजा ने जवाब दिया, जो वहां कुटिया बनाकर रहा, उसकी।

बेताल ने पूछा, क्यों?

विक्रम बोला, जिसने हड्डियाँ रखीं, वह तो उसके बेटे के बराबर हुआ। जिसने विद्या सीखकर जीवन-दान दिया, वह बाप के बराबर हुआ। जो राख लेकर रमा रहा, वही उसकी हक़दार है।

विक्रम का यह जवाब सुनकर बेताल ने कहा- तुमने बहुत अच्छा गणित किया परन्तु अपनी शर्त भूल गये और फिर बेताल पीपल के पेड़ पर जा लटका।

विक्रम को फिर लौटना पड़ा और जब वह उसे लेकर चला तो बेताल ने फिर से बैताल पच्चीसी की एक कहानी सुनाने लगा।

9. पाप किसको लगा (Vikram Betal Story in Hindi)

काशी में प्रतापमुकुट नाम का राजा राज्य करता था। उसके वज्रमुकुट नाम का एक बेटा था। एक दिन राजकुमार दीवान के लड़के को साथ लेकर शिकार खेलने जंगल गया। घूमते-घूमते उन्हें तालाब मिला। उसके पानी में कमल खिले थे और हंस किलोल कर रहे थे। किनारों पर घने पेड़ थे, जिन पर पक्षी चहचहा रहे थे। दोनों मित्र वहाँ रुक गये और तालाब के पानी में हाथ-मुँह धोकर ऊपर महादेव के मन्दिर पर गये।

घोड़ों को उन्होंने मन्दिर के बाहर बाँध दिया। वो मन्दिर में दर्शन करके बाहर आये तो देखते क्या हैं कि तालाब के किनार कोई राजकुमारी अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आई है। दीवान का लड़का तो वहीं एक पेड़ के नीचे बैठा रहा, पर राजकुमार से न रहा गया। वह आगे बढ़ गया।

राजकुमार ने उसकी ओर देखा तो वह उस पर मोहित हो गया। राजकुमारी भी उसकी तरफ़ देखती रही। फिर उसने किया क्या कि जूड़े में से कमल का फूल निकाला, कान से लगाया, दाँत से कुतरा, पैर के नीचे दबाया और फिर छाती से लगा, अपनी सखियों के साथ चली गयी।

उसके जाने पर राजकुमार निराश हो अपने मित्र के पास आया और सब हाल सुनाकर बोला, मैं इस राजकुमारी के बिना नहीं रह सकता। पर मुझे न तो उसका नाम मालूम है, न ठिकाना। वह कैसे मिलेगी?

दीवान के लड़के ने कहा, राजकुमार, आप इतना घबरायें नहीं। वह सब कुछ बता गयी है। राजकुमार ने पूछा, कैसे?

वह बोला, उसने कमल का फूल सिर से उतार कर कानों से लगाया तो उसने बताया कि मैं कर्नाटक की रहनेवाली हूँ। दाँत से कुतरा तो उसका मतलब था कि मैं दंतावट राजा की बेटी हूँ। पाँव से दबाने का अर्थ था कि मेरा नाम पद्मावती है और छाती से लगाकर उसने बताया कि तुम मेरे दिल में बस गये हो।

इतना सुनना था कि राजकुमार खुशी से फूल उठा। बोला, अब मुझे कर्नाटक देश में ले चलो। दोनों मित्र वहां से चल दिये। घूमते-फिरते, सैर करते, दोनों कई दिन बाद वहां पहुँचे। राजा के महल के पास गये तो एक बुढ़िया अपने द्वार पर बैठी चरखा कातती मिली।

उसके पास जाकर दोनों घोड़ों से उतर पड़े और बोले, माई, हम सौदागर हैं। हमारा सामान पीछे आ रहा है। हमें रहने को थोड़ी जगह दे दो। उनकी शक्ल-सूरत देखकर और बात सुनकर बुढ़िया के मन में ममता उमड़ आयी। बोली, बेटा, तुम्हारा घर है। जब तक जी में आए, रहो।

दोनों वहीं ठहर गये। दीवान के बेटे ने उससे पूछा, माई, तुम क्या करती हो? तुम्हारे घर में कौन-कौन है? तुम्हारी गुज़र कैसे होती है?

बुढ़िया ने जवाब दिया, बेटा, मेरा एक बेटा है जो राजा की चाकरी में है। मैं राजा की बेटी पद्मावती की धाय थी। बूढ़ी हो जाने से अब घर में रहती हूँ। राजा खाने-पीने को दे देता है। दिन में एक बार राजकुमारी को देखने महल में जाती हूँ।

राजकुमार ने बुढ़िया को कुछ धन दिया और कहा, माई, कल तुम वहां जाओ तो राजकुमारी से कह देना कि जेठ सुदी पंचमी को तुम्हें तालाब पर जो राजकुमार मिला था, वह आ गया है।

अगले दिन जब बुढ़िया राजमहल गयी तो उसने राजकुमार का सन्देशा उसे दे दिया। सुनते ही राजकुमारी ने गुस्सा होंकर हाथों में चन्दन लगाकर उसके गाल पर तमाचा मारा और कहा, मेरे घर से निकल जा।

बुढ़िया ने घर आकर सब हाल राजकुमार को कह सुनाया। राजकुमार हक्का-बक्का रह गया। तब उसके मित्र ने कहा, राजकुमार, आप घबरायें नहीं, उसकी बातों को समझें। उसने दसों उँगलियाँ सफ़ेद चन्दन में डुबो कर गाल पर मारीं, इससे उसका मतलब यह है कि अभी दस रोज़ चाँदनी के हैं। उनके बीतने पर मैं अँधेरी रात में मिलूँगी।

दस दिन के बाद बुढ़िया ने फिर राजकुमारी को ख़बर दी तो इस बार उसने केसर के रंग में तीन उँगलियाँ डुबोकर उसके मुँह पर मारीं और कहा, भाग यहाँ से

बुढ़िया ने आकर सारी बात सुना दी। राजकुमार शोक से व्याकुल हो गया। दीवान के लड़के ने समझाया, इसमें हैरान होने की क्या बात है? उसने कहा है कि मुझे मासिक धर्म हो रहा है। तीन दिन और ठहरो।

तीन दिन बीतने पर बुढ़िया फिर वहाँ पहुँची। इस बार राजकुमारी ने उसे फटकार कर पश्चिम की खिड़की से बाहर निकाल दिया। उसने आकर राजकुमार को बता दिया। सुनकर दीवान का लड़का बोला, मित्र, उसने आज रात को तुम्हें उस खिड़की की राह बुलाया है।

मारे खुशी के राजकुमार उछल पड़ा। समय आने पर उसने बुढ़िया की पोशाक पहनी, इत्र लगाया, हथियार बाँधे। दो पहर रात बीतने पर वह महल में जा पहुँचा और खिड़की में से होकर अन्दर पहुँच गया। राजकुमारी वहाँ तैयार खड़ी थी। वह उसे भीतर ले गयी।

अन्दर का हाल देखकर राजकुमार की आँखें खुल गयीं। एक-से-एक बढ़कर चीजें थीं। रात-भर राजकुमार राजकुमारी के साथ रहा। जैसे ही दिन निकलने को आया कि राजकुमारी ने राजकुमार को छिपा दिया और रात होने पर फिर बाहर निकाल लिया। इस तरह कई दिन बीत गये। अचानक एक दिन राजकुमार को अपने मित्र की याद आयी। उसे चिन्ता हुई कि पता नहीं, उसका क्या हुआ होगा।

उदास देखकर राजकुमारी ने कारण पूछा तो उसने बता दिया। बोला, वह मेरा बड़ा प्यारा दोस्त हैं बड़ा चतुर है। उसकी होशियारी ही से तो तुम मुझे मिल पाई हो। राजकुमारी ने कहा, मैं उसके लिए बढ़िया-बढ़िया भोजन बनवाती हूँ। तुम उसे खिलाकर, तसल्ली देकर लौट आना।

खाना साथ में लेकर राजकुमार अपने मित्र के पास पहुँचा। वे महीने भर से मिले नही थे। राजकुमार ने मिलने पर सारा हाल सुनाकर कहा कि राजकुमारी को मैंने तुम्हारी चतुराई की सारी बातें बता दी हैं, तभी तो उसने यह भोजन बनाकर भेजा है।

दीवान का लड़का सोच में पड़ गया। उसने कहा, यह तुमने अच्छा नहीं किया। राजकुमारी समझ गयी कि जब तक मैं हूँ, वह तुम्हें अपने बस में नहीं रख सकती। इसलिए उसने इस खाने में ज़हर मिलाकर भेजा है।

यह कहकर दीवान के लड़के ने थाली में से एक लड्डू उठाकर कुत्ते के आगे डाल दिया। खाते ही कुत्ता मर गया।

राजकुमार को बड़ा बुरा लगा। उसने कहा, ऐसी स्त्री से भगवान बचाये! मैं अब उसके पास नहीं जाऊँगा।

दीवान का बेटा बोला, नहीं, अब ऐसा उपाय करना चाहिए, जिससे हम उसे घर ले चलें। आज रात को तुम वहां जाओ। जब राजकुमारी सो जाये तो उसकी बायीं जाँघ पर त्रिशूल का निशान बनाकर उसके गहने लेकर चले आना।

राजकुमार ने ऐसा ही किया। उसके आने पर दीवान का बेटा उसे साथ ले, योगी का भेस बना, मरघट में जा बैठा और राजकुमार से कहा कि तुम ये गहने लेकर बाज़ार में बेच आओ। कोई पकड़े तो कह देना कि मेरे गुरु के पास चलो और उसे यहाँ ले आना।

राजकुमार गहने लेकर शहर गया और महल के पास एक सुनार को उन्हें दिखाया। देखते ही सुनार ने उन्हें पहचान लिया और कोतवाल के पास ले गया। कोतवाल ने पूछा तो उसने कह दिया कि ये मेरे गुरु ने मुझे दिये हैं। गुरु को भी पकड़वा लिया गया। सब राजा के सामने पहुँचे।

राजा ने पूछा, योगी महाराज, ये गहने आपको कहाँ से मिले?

योगी बने दीवान के बेटे ने कहा, महाराज, मैं मसान में काली चौदस को डाकिनी-मंत्र सिद्ध कर रहा था कि डाकिनी आयी। मैंने उसके गहने उतार लिये और उसकी बायीं जाँघ में त्रिशूल का निशान बना दिया।

इतना सुनकर राजा महल में गया और उसने रानी से कहा कि पद्मावती की बायीं जाँघ पर देखो कि त्रिशूल का निशान तो नहीं है। रानी ने देखा, तो सही में निशान था। राजा को बड़ा दु:ख हुआ। बाहर आकर वह योगी को एक ओर ले जाकर बोला, महाराज, धर्मशास्त्र में खोटी स्त्रियों के लिए क्या दण्ड है?

योगी ने जवाब दिया, राजन्, ब्राह्मण, गऊ, स्त्री, लड़का और अपने आसरे में रहनेवाले से कोई खोटा काम हो जाये तो उसे देश-निकाला दे देना चाहिए। यह सुनकर राजा ने पद्मावती को डोली में बिठाकर जंगल में छुड़वा दिया। राजकुमार और दीवान का बेटा तो ताक में बैठे ही थे। राजकुमारी को अकेली पाकर साथ ले अपने नगर में लौट आये और आनंद से रहने लगे।

इतनी बात सुनाकर बेताल बोला, राजन्, यह बताओ कि पाप किसको लगा?

विक्रम ने कहा, पाप तो राजा को लगा। दीवान के बेटे ने अपने स्वामी का काम किया। कोतवाल ने राजा का कहना माना और राजकुमार ने अपना मनोरथ सिद्ध किया। राजा ने पाप किया, जो बिना विचारे उसे देश-निकाला दे दिया।

राजा का इतना कहना था कि बेताल फिर उसी पेड़ पर जा लटका। राजा वापस गया और बेताल को लेकर चल दिया। बेताल बोला, विक्रम तुम बड़े हठी मालूम होते हो, लेकिन कोई बात नहीं। देखता हूँ कितने हठी और कितने धैर्यवान हो।

10. श्रेष्ठ वर कौन (vikram betal stories)

मगध देश में महाबल नाम का एक राजा राज्य करता था । जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर कन्या थी। वह अद्वितीय रूपवती थीं। जब वह विवाह योग्य हुई तो राजा को बहुत चिन्ता होने लगी।

बहुत से राजकुमार आये लेकिन राजकुमारी को कोई पसंद न आया। राजा ने सोचा जो राजकुमार शक्तिशाली और गुणवान होगा उसी से राजकुमारी का विवाह होगा। एक दिन एक राजकुमार राजदरबार में आया और बोला, मैं राजकुमारी का हाथ मांगने आया हूँ।

राजा ने कहाँ, मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण सम्पन होंगे। राजकुमार ने कहा, मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।

राजा बोला, ठीक है। कुछ दिन इंतजार करें, मैं राजकुमारी से पूछकर बताता हूँ। फिर एक दिन एक और राजकुमार आया। उसने कहा की मैं त्रिकालदर्शी हूँ। मैं भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों की बातें बता सकता हूँ।

राजा ने उसे भी इंतजार करने को कहा।

कुछ दिन बाद एक और राजकुमार आया। जब राजा ने उससे भी पूछा कि आपमें क्या गुण हैं तब उसने कहा  मैं तो धनुर्विद्या में निपुण हूँ धनुष चलाने में मेरा कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता।

इस तरह तीन वर इकट्ठे हो गये। राजा सोचने लगा कि कन्या एक है, राजकुमार तीन हैं। तीनों ही सुंदर और गुणवान हैं। क्या करे! 

इसी बीच एक राक्षस आया और राजकुमारी को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया। तीनों वरों में जो त्रिकालदर्शी था। राजा ने उससे पूछा तो उसने बता दिया कि एक राक्षस राजकुमारी को उठाकर ले गया है और वह अभी विंध्याचल पहाड़ पर है।

दूसरे ने कहा, मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे। तीसरा बोला, मैं शब्दवेधी तीर चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।

वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर राजकुमारी को बचा लाये। 

इतना कहकर बेताल बोला हे राजन्! न्यायी विक्रम, अब तुम न्याय करो।

बताओ, वह राजकुमारी के लिए श्रेष्ठ वर कौन होगा?

राजा ने कहा, जिसने राक्षस को मारा, उसकों मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो सिर्फ मदद की।

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